अध: पतन क्यों होता है?

यदि किसी प्रकार का दम्भ आकर उपस्थित हो, तो ऐसा होने पर श्रीगुरुपादपद्म के निर्देश पालन अथवा मनोऽभीष्ट सेवा तो कर ही नहीं पाऊँगा अपितु अधःपतन उपस्थित होगा । मनुष्य के अध: पतन से पूर्व अश्रद्धा नामक एक वस्तु आती है । यदि साधुगुरु के प्रति श्रद्धा हो, तभी मंगल है, अन्यथा सर्वनाश हो जायेगा, संस्पृहा वर्द्धित हो जायेगी । मैं भगवान का दर्शन प्राप्त कर लूँगा, यह दुर्बुद्धि, दम्भ, मापाबुद्धि अथवा भोगबुद्धि है । श्रीविग्रह मुझे देख रहें हैं, यही श्रीविग्रह- दर्शन है । इसीलिये कान देकर ठाकुरजी का दर्शन करना होता है । दैन्यार्त्ति लेकर, ठाकुरजी की कृपादृष्टि प्राप्ति के लिये ठाकुरजी के सुख के लिये ठाकुरजी के निकट जाना होता है, तभी मंगल होगा । भोग और त्याग के प्रति श्रद्धा नहीं रहने का अर्थ है, भगवान प्रति श्रद्धा । श्रद्धा यदि विश्व और विश्ववासियों के प्रति हो, तो ऐसा होने पर वह भोग हुआ । विषय मेरे भोग्य होंगे, यह बुद्धि ही दीक्षा अथवा दिव्यज्ञान का अभाव है । मैं कौन हूँ, यदि यह विचार हृदय में उपस्थित नहीं हो, मेरे नित्य आराध्य के साथ यदि मेरा सम्बन्धज्ञान उदित नहीं हो, तो ऐसा होने पर श्रद्धा और शरणागति किस प्रकार आयेगी? यदि श्रद्धा नहीं हो, तो ऐसा होने पर साधुदर्शन अथवा भगवद्दर्शन नहीं होता, ईर्ष्या, हिंसा अथवा समालोचना की प्रवृत्ति उपस्थित होती है।

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